Friday, February 18, 2011

मैं झूठी हूँ


मन में कसक सी है
किसी कोने में एक हूक उठती है और
गले में फांस बनकर चुभती रहती है
पीड़ा से आँख भर आती है
माँ पूछती है कि ठीक हो
गला रुंध आता है
हंस कर कहती हूँ
हाँ सब बढ़िया है
नई जगह है ना
सुबह आँखें चुराती हूँ सबसे
तकिये को उल्टा करके उठती हूँ
ताकि भीगा मन नीचे छुप जाये
झूठी हंसी होठों पर चिपका कर रख पाना मुश्किल है
फिसल कर कब गिर जाती है
पता नहीं चलता
नम आँखों से फिर से बोलना
सब ठीक है
सब ठीक ही तो है
सिवाय इस के
कि मैं झूठी हूँ.

Wednesday, September 1, 2010

पहली कहानी

गूगल से ट्रांसलिटरेटर डाउनलोड करने के बाद यह पहला पोस्ट है.
 हिंदी में लिखने का कारण है हिंदी भाषा से मेरा प्रेम. IT  में होने के  और कंप्यूटर युग की वजह से हिंदी में लिखना पढ़ना कम होता है.


कोशिश करती रहूंगी की यहाँ पर लिखने का अभ्यास जारी रहे.